| | | | | | |
|
گفت پیغامبر ز سرمای بهار |
|
تن مپوشانید یاران زینهار |
|
|
زانک با جان شما آن میکند |
|
کان بهاران با درختان میکند |
|
|
لیک بگریزید از سرد خزان |
|
کان کند کو کرد با باغ و رزان |
|
|
راویان این را به ظاهر بردهاند |
|
هم بر آن صورت قناعت کردهاند |
|
|
بیخبر بودند از جان آن گروه |
|
کوه را دیده ندیده کان بکوه |
|
|
آن خزان نزد خدا نفس و هواست |
|
عقل و جان عین بهارست و بقاست |
|
|
مر ترا عقلیست جزوی در نهان |
|
کامل العقلی بجو اندر جهان |
|
|
جزو تو از کل او کلی شود |
|
عقل کل بر نفس چون غلی شود |
|
|
پس بتاویل این بود کانفاس پاک |
|
چون بهارست و حیات برگ و تاک |
|
|
از حدیث اولیا نرم و درشت |
|
تن مپوشان زانک دینت راست پشت |
|
|
گرم گوید سرد گوید خوش بگیر |
|
تا ز گرم و سرد بجهی وز سعیر |
|
|
گرم و سردش نوبهار زندگیست |
|
مایهی صدق و یقین و بندگیست |
|
|
زان کزو بستان جانها زنده است |
|
زین جواهر بحر دل آگنده است |
|
|
بر دل عاقل هزاران غم بود |
|
گر ز باغ دل خلالی کم شود |
|