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با چون تو مهی یک شب گر خواب توان کردن |
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از بهر خوشی عمری اسباب توان کردن |
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آن طره به یک سو نه وز گوشهی مه ما نا |
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شبهای سیاهم را مهتاب توان کردن |
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گر غمزهی تو جوید شاگرد به خونریزی |
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صد خضر و مسیحا را قصاب توان کردن |
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بدیدم یک رهش دیوانه گشتم |
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دلم گوید که بار دیگرش بین |
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دلم را سوختن ور باورت نیست |
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درونم چاک کن خاکسترش بین |
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چه خوش باشد ترا از خواب مستی |
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ز زخم بوسهها بیدار کردن |
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به جرم عشق گر خونم بریزند |
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نخواهم هرگز استغفار کردن |
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به شمشیری نگردم منکر از عشق |
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ز تو کشتن ز من اقرار کردن |
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زین بس من و جور عشق و تسلیم |
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کزا مده سرکشید نتوان |
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غم سینه بسوخت چون توان کرد |
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خود پردهی خود درید نتوان |
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بییاری بخت کام دل نیست |
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بی پر به هوا پرید نتوان |
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ایوان مراد بس بلند است |
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آنجا به هوس رسید نتوان |
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میگریم بر غریبی خویش |
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چون ابر به موسم بهاران |
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گر شرح دهم غم تو صد سال |
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یک قصه نگویم از هزاران |
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آن ها که تو میکنی بر این دل |
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از دل نشود به روزگاران |
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گفتم که نزد من نشین مگذار زارم اینچنین |
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تو نازکی و نازنین تنگ آیی از فریاد من |
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ای دل دران زلف دو تا می باش تسلیم بلا |
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کاسان نخواهد شد رها ازدام این صیاد من |
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امشب نهانی روی را برآستانش سودهام |
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ای گریه امروزی مشو این روی خاک آلود من |
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